महिलाओं के संवैधानिक एवं विधिक अधिकार: विश्लेषणात्मक अध्ययन
(श्रीमती) प्रीति सतपथी
सहायक प्राध्यापक] सौ. कुसुम ताई दाबके विधि महाविद्यालय, रायपुर (छ.ग)
सार संक्षेपः-
स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नारी की स्थिति में काफी सुधारात्मक परिवर्तन हुए है । आजादी के 64 वर्शो के पश्चात हम यदि कानूनी दृष्टिकोण से नारी के प्रति अपराधों को रोकने के लिए बनाये गये अधिनियमों की विवेचना करते हैं तो स्पष्ट परिलक्षित होता है कि हमारे देश में नारी की गरिमामयी स्थिति को बनाये रखने के लिए बहुत सारे कानून बनाये गये हैं। किन्तु पर्याप्त कानूनी शिक्षा के अभाव में कानूनों की जानकारी उनकों नहीं मिल पाती, यहाँ तक कि अधिकांश महिलाओं को पता ही नहीं हो पाता कि उनके कौन कौन से अधिकार प्राप्त हैं । प्रस्तुत शोध पत्र में महिलाओं के उत्थान एवं उनके प्रति अपराधों को रोकने हेतु बनाए गए अधिकारों की विवेचना की गई है ।
प्रस्तावनाः-
प्राचीन युग से वर्तमान युग तक नारी के संघर्ष की गाथा बहुत लंबी है। कहा जाता रहा है कि हजार वर्षो से पराधीनता में रहने वाली एकमात्र जाति ‘‘नारी‘‘ ही है । इसी कारण स्त्री को ‘‘अंतिम उपनिवेश‘‘ की भी संज्ञा दी जाती रही है। वर्तमान शताब्दी में विश्व में अपराधों की संख्या में असाधारण वृद्धि हुई है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव समाज पर स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है क्योंकि समाज और अपराध एक दूसरे के पूरक हैं । अपराध समाज में कारित होते हैं और उनका उपचार भी समाज में समाहित होता है । आदिम युग में मानवीय आवश्यकताएं न्यून थी, इसलिए अपराध भी काफी कम होते थे, किन्तु वर्तमान में मनुष्य की नित नये बढ़ती आवश्यकताओं के कारण भी अपराध ज्यादा होने लगे हैं । प्रारंभ में अपराध केवल चोरी, लूट, हत्या, बलात्कार इत्यादि की घटनाओं तक ही सीमित थे, किन्तु वर्तमान में इन्टरनेट, इलेक्ट्राॅनिक मीडिया तक बढ़ गई हैं, जिसे साइबर अपराध भी कहा जाता है ।
यद्यपि भारतीय संविधान के अनुच्छेद स्त्री और पुरुष को समान दर्जा देता है किन्तु आंकड़ों से स्पष्ट है कि ये सिर्फ कागजों तक ही सीमित है । यदि हमारे देश में घटित होने वाले महिलाओं के प्रति अपराधों का विश्लेषण करे तो स्पष्ट होता है कि प्रति 6 मिनट पर महिलाओं के साथ छेड़छाड़, सार्वजनिक अपमान, हत्या का प्रयास, बलात्कार, यौन-उत्पीड़न, अश्लीलता जैसी घटनाएं घटती है । भारत के विभिन्न प्रदेशों की स्थिति को देखें तो महाराष्ट्र में सर्वाधिक फिर मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश में राजस्थान में महिलाओं के प्रति ज्यादा अपराध घटित होते हैं ।
ऐसे अपराधों को रोकने कठोर से कठोरतम् कानून निर्मित किए जा रहे हैं, किन्तु जब तक पुरुषों तथा समाज की मानसिकता में सुधार नहीं आएगा, ऐसे कानूनों का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा क्योंकि समस्याओं का जन्म समाज से ही होता है और उनका उन्मूलन भी कानून के उचित क्रियान्वयन के साथ साथ समाज द्वारा ही हो सकता है । भारतीय संविधान द्वारा महिलाओं को बहुत से संवैधानिक एवं विधिक अधिकार प्रदŸा किये गये हैं, इसके साथ ही इन अधिकारों के उचित क्रियान्वयन एवं महिलाओं को उत्पीड़न से बचाने हेतु विभिन्न आयोगों की स्थापना भी की गई है ।
1.महिलाओं के लिए संवैधानिक उपबंधः-
;पद्ध भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 के अनुसार ‘‘भारत राज्य क्षेत्र के किसी ब्यक्ति को विधि के समक्ष समता से अथवा विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।‘‘
समानता का तात्पर्य यहां पर यह है कि स्त्री और पुरुष में किसी प्रकार का लिंग भेद नहीं है तथा यह अधिकार स्त्री और पुरुष दोनों को समान रूप से प्राप्त है ।
;पपद्ध अनुच्छेद 15 के अनुसार ‘‘राज्य केवल धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर नागरिकों के बीच कोई विभेद नहीं करेगा‘‘ भारतीय संविधान में स्पष्ट है कि पुरुष एवं महिला को समान अधिकार प्रदान किये गये हैं, इतना ही इसी अनुच्छेद के खंड 3 में स्त्रियों के लिए विशेष व्यवस्था भी की गई है क्योंकि महिलाओं की स्वाभाविक प्रकृति के कारण उन्हें विशेष संरक्षण की आवश्यकता होती है।
;पपपद्ध अनुच्छेद - 19 में महिलाओं को स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है, ताकि वह स्वतंत्र रूप से भारत के क्षेत्र में आवागमन, निवास एवं व्यवसाय कर सकती है । स्त्री लिंग होने के कारण किसी भी कार्य से उनको वंचित करना मौलिक अधिकार का उल्लंघन माना गया है । तथा ऐसी स्थिति में कानून की सहायता हो सकेगी ।
;पअद्ध अनुच्छेद 23-24 द्वारा महिलाओं के विरूद्ध होने वाले शोषण को नारी गरिमा के लिए उचित नहीं मानते हुए महिलाओं की खरीद-ब्रिकी वेश्यावृŸिा के लिए जबरदस्ती करना, भीख मंगवाना आदि को दंडनीय माना गया है । इसके लिए सन् 1956 में ‘सेप्रश्न आॅफ इमोरस ट्राफिक इन विमेन इन विमेन एंड गल्र्स एक्ट‘‘ भी भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया ताकि महिलाओं के विरूद्ध होने वाले सभी प्रकार के शोषण को समाप्त किया जा सके ।
;अद्ध आर्थिक न्याय प्रदान करने हेतु अनुच्छेद 39 (क) में स्त्री को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार एवं अनुच्छेद 39 (द) में समान कार्य के लिए समान वेतन का उपबंध है।
;अपद्ध अनुच्छेद 42 के अनुसार महिला को विशेष प्रसूति अवकाश प्रदान करने की बात कही गई है।
;अपपद्ध अनुच्छेद 46 इस बात का आव्हान करता है कि राज्य दुर्बल वर्गो के शिक्षा तथा अर्थ संबंधी हितों की विशेष सावधानी से अभिवृद्धि करेगा तथा सामाजिक अन्याय एवं सब प्रकार के शोषण से संरक्षा करेगा ।
;अपपपद्ध संविधान के भाग 4 के अनुच्छेद 51 (क) (डं.) में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि हमारा दायित्व है कि हम हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा के महत्व को समझे तथा ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो कि स्त्रियों के सम्मान के खिलाफ हो ।
;अपपपद्ध अनुच्छेद 243 (द) (3) में प्रत्येक पंचायत में प्रत्यक्ष निर्वाचन से भरे गये स्थानों की कुल संख्या के 1/3 स्थान स्त्रियों के लिए आरक्षित रहेगें और चक्रानुक्रम से पंचायत के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में आबंटित किये जाएगें ।
;पगद्ध अनुच्छेद 325 के अनुसार निर्वाचक नामावली में महिला एवं पुरुष दोनों को ही समान रूप से सम्मिलित होने का अधिकार प्रदान किया गया है, अनुच्छेद 325 द्वारा संविधान निर्माताओं ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि भारत में पुरुष और स्त्री को समान मतदान अधिकार दिये गये हैं ।
2. विधिक उपबंध ;स्महंस च्तवअपेपवदद्ध
महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों एवं अत्याचारों के निवारण के लिए राज्य द्वारा विभिन्न अधिनियम पारित किये गये हैं, ताकि महिलाओं को उनका अधिकार मिल सकें एवं सामाजिक भेदभाव से उनकी सुरक्षा हो सकें ।
;पद्ध भारतीय दंड संहिता 1860 के प्रावधानः- भा.द.ंसं. में भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचार एवं निर्दयता के विरूद्ध व्यवस्था की गई है ।
धारा 292 से 294 तहत विशिष्टता और सदाचार को प्रभावित करने वाले मामलों पर रोक लगाई गयी है । इसके अनुसार अगर कोई स्त्रियों की नंगी तस्वीरें प्रदर्शित करता है अथवा क्रय-विक्रय करता है अथवा भौंडा प्रदर्शन करता है तो ऐसे व्यक्ति को दो वर्ष तक की सजा एवं 2 हजार रुपया तक जुर्माना अथवा दोनों ही सजाओं का प्रावधान है ।
;पपद्ध धारा 312 से 318 में गर्भपात कारित करना, अजन्में शिशुओं को नुकसान पहुंचाने, शिशुओं को अरक्षित छोड़ने और जन्म छिपाने के विषय में दंड का प्रावधान किया गया है ।
;पपपद्ध धारा 354 के तहत अगर कोई व्यक्ति किसी स्त्री की लज्जा भंग करता है अथवा करने के उद्देश्य से आपराधिक बल प्रयोग करता है तो उसे 2 वर्ष की सजा अथवा जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किये जानो का प्रावधान है ।
;पअद्ध धारा 361 के अनुसार यदि किसी महिला की आयु 18 वर्ष से कम है और उसे कोई व्यक्ति उसके विधिपूर्व संरक्षक की संरक्षकता से बिना सम्मति के या बहला अथवा फुसलाकर ले जाता है तो वह व्यक्ति व्यपहरण का दोषी होगा । तथा धारा 363 से 366 में दंड का प्रावधान किया गया है ।
;अद्ध धारा 372 के तहत अगर किसी 18 वर्ष से कम आयु की महिला को किसी वेश्यावृŸिा के प्रयोजन के लिए बेचा जाने पर दोषी व्यक्ति को 10 वर्ष तक की सजा व जुर्माना अथवा दोनों की सजा दी जा सकेगी ।
;अपद्ध धारा 375 में बलात्कार को परिभाषित किया गया है एवं धारा 376 में बलात्कार के लिए दंड का प्रावधान है ।
;अपपद्ध धारा 498 (अ) में प्रावधानित किया गया है कि अगर कोई पति अथवा उसका कोई रिश्तेदार विवाहित पत्नी के साथ निर्दयतापूर्वक दुव्र्यवहार करता है अथवा दहेज को लेकर यातना देता है तो न्यायालय उसे 2 साल तक की सजा दे सकता है ।
;अपपपद्ध धारा 509 के तहत अगर कोई व्यक्ति स्त्री की लज्जा का अनादर करने के आशय से कोई शब्द कहता है कोई ध्वनि या कोई अंग विक्षेप करता हे या कोई वस्तु प्रदर्शित करता है अथवा कोई ऐसा कार्य करता है जिससे किसी स्त्री की एकान्तता पर अतिक्रमण होता हे तो ऐसा व्यक्ति एक वर्ष तक की सजा एवं जुर्माना अथवा दोनों से दंडित किया जायेगा ।
3. महिलाओं के लिए पारित किये गये विभिन्न अधिनियम
हमारे देश मे ंविभिन्न समयों में प्रचलित कुरीतियों एवं कुप्रथाओं को मुक्त कराने हेतु बहुत से अधिनियम पारित किये गये है तथा महिलाओं को सुरक्षा एवं अधिकार देने हेतु भी अधिनियम पारित किये गये है, जो निम्न हैः-
(1) राज्य कर्मचारी बीमा अधिनियम 1948
(2) दि प्लांटेशनस लेबर अधिनियम 1951
(3) परिवार न्यायालय अधिनियम, 1954
(4) विशेष विवाह अधिनियम, 1954
(5) हिन्दु विवाह अधिनियम 1955
(6) हिन्दु उŸाराधिकारी अधिनियम, 1956 (संशोधन 2005)
(7) अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम 1956
(8) प्रसूति प्रसूविधा अधिनियम 1961 (संशोधित 1995)
(9) दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961
(10) गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम 1971
(11) ठेका श्रमिक (रेग्युलेशन एण्ड एबोलिशन) अधिनियम 1976
(12) दि इक्वल रियुनरेशन अधिनियम 1976
(13) बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006
(14) आपराधिक विधि (संशोधन) अधिनियम 1983
(15) कारखाना (संशोधन) अधिनियम 1986
(16) इन्डिकेंट रिप्रेसेन्टेशन आॅफ वुमेन एक्ट 1986
(17) कमीशन आॅफ सती (प्रिवेन्शन) एक्ट, 1987
(18) घरेलू हिंसा से संरक्षण अधिनियम 2005
4. अन्य प्रयास
महिलाओं की दशा सुधारने हेतु भारत सरकार द्वारा सन् 1985 में महिला एवं बाल विकास विभाग की स्थापना तथा 1992 में राष्ट्रीय महिला आयोग की स्थापना की गई तथा देश में अतंर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा । भारत सरकार द्वारा वर्ष 2001 को महिला सशक्तीकरण वर्ष भी घोषित किया गया ।
इसी प्रकार विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों का क्रियान्वयन भी सरकार द्वारा समय-समय पर किया गया है । जिनमें प्रमुख है - बालिका समृद्धि योजना, किशोरी शक्ति योजना, बालिका बचाओं योजना, इंदिरा महिला योजना, सरस्वती सायकल योजना, स्वयंसिद्धा योजना, महिला समाख्या इत्यादि ।
निष्कर्ष एवं सुझावः-
महिलाओं को प्रदŸा अधिकारों एवं उनके लिए बनायें गये अधिनियमों के बाद भी महिलाओं की स्थिति शोचनीय है । महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए पर्याप्त अधिनियम है, जिनके कारण महिलाओं की स्थिति में सुधार नहीं हो पा रहा है । स्वतंत्रता के पश्चात से वर्तमान तक विभिन्न अधिनियम जैसेः- हिन्दु विवाह अधिनियम, विशेष विवाह अधिनियम, विवाह-विच्छेद व तलाक अधिनियम वेश्यावृŸिा उन्मूलन अधिनियम, गर्भपात की चिकित्सा द्वारा मान्यता जैसे प्रमुख सुधारों से महिलाओं की सामाजिक स्थिति में पर्याप्त अंतर आया है, फिर भी बहुत सी कमियाँ है, जिनकी वजह से इन कानूनों का लाभ महिलाएँ नहीं उठा पाती -
(1) पूरे देश में महिलाओं के प्रति होने वाले अपराधों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट है कि अधिकांश मामलों में रिपोर्ट ही दर्ज नहीं करवाये जाते । चाहे पारिवारिक दबाव हो या सामाजिक दबाव जिसके चलते बहुत सी घटनाएँ परिवार की चारदीवारी में ही सिमट कर रह जाती है ।
(2) महिलाओं के उत्थान एवं सरंक्षण के लिए पर्याप्त कानून एवं अधिनियम है, किन्तु लोगों को विशेषकर महिलाओं को कानूनों एवं अधिकारों का पर्याप्त ज्ञान ही नहीं है, अतः ऐसे कानूनों का पर्याप्त प्रचार-प्रसार या जानकारी समय-समय पर महिलाओं को प्रदान की जानी चाहिए।
(3) घरेलू हिंसा से संबंधित मामलों में महिलाएँ आगे नहीं आती, यदि पीड़ित महिलाएँ ऐसे घटनाओं के विरूद्ध आवाज उठाना भी चाहे तो समाज में इसे उचित नहीं माना जाता । ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कानून व सरकार के साथ समाज को भी अपनी उचित भूमिका निर्वहन करना चाहिए ।
(4) देश में कुल मतदाताओं में आधी संख्या महिलाओं की है, मगर इसके बावजूद भी लोकसभा तथा राज्य विधानमंडलों में उनका प्रतिनिधित्व घोर निराशाजनक हे । अतः राजनीति में भी महिलाओं को अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी चाहिए ।
(5) भा.दं.सं. की धारा 498 ए के अंतर्गत विवाहित महिला पर सभी अत्याचार अपराध है, किन्तु इसे व्यवहार में दहेज प्रताड़ना से जोड़ दिया जाता है, जो कि उचित नहीं है । क्योंकि महिलाएँ फौजदारी मुकदमा के लिए हिम्मत नहीं जुटा पाती और साथ ही उनकों घर से निकाले जाने का भी डर रहता है ।
(6) लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाएँ प्रतिनिधित्व नहीं कर पाती है । विकसित देशों की लोकतांत्रिक संस्थाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व उनकी संख्या के अनुपात में नहीं है।
(7) महिलाओं में साक्षरता के दर भी काफी कम है । आंकड़ों से स्पष्ट है कि 66ः पुरुषों की तुलना में सिर्फ 39ः महिलाएँ ही शिक्षित है । शिक्षा का इतना कम प्रतिशत भी महिलाओं के प्रति अत्याचार का कारण है ।
(8) महिलाओं की स्थिति सुधारने में गैर-सरकारी संगठन अधिक प्रभावशाली भूमिका निभा सकते है, साथ ही उत्पीड़ित महिलाओं को सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों द्वारा पर्याप्त दी जानी चाहिए तथा महिलाओं के लिए स्वरोजगार योजनाओं आदि को भी पर्याप्त महत्व दिया जाए ।
संदर्भ सूचीः-
(1) देसाई नीरा और गैत्रयी कृष्णराज वीमेन एण्ड सोसायटी इन इंडिया अजंत पब्लिकेशंस दिल्ली 1987, पृ. 46
(2) संयुक्त राष्ट्र संघ रिपोर्ट वनडे वीमने: ट्रेएड्स एण्ड स्टेटिक्स (डीरीलली) (1995)
(3) पाण्डेय, डाॅ. जयनारायण, भारत का संविधान, सेन्ट्रल लाॅ एजेन्सी दिल्ली, 41 वाँ संस्करण 2008
(4) यादव राजाराम, भारतीय दंड संहिता, 1860 पंचम संस्करण 2005, सेन्ट्रल लाॅ पब्लिकेशन्स, इलाहाबाद
(5) आहूजा राम, क्राइम अगेनस्ट वुमेन, जयपुर रावत पब्लिकेशन्स, 1987
(6) रोजगार और निर्माण मार्च-2005
(7) महिलाओं से संबंधित विभिन्न समाचार पत्रों के आलेख
Received on 15.04.2014 Modified on 22.05.2014
Accepted on 14.06.2014 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Rev. & Res. Social Sci. 2(2): April-June 2014; Page 144-147