छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कविः धनी धर्मदास
श्रीमती सोनिया गोस्वामी
Research Scholor, Department of Hindi, Govt. D. B. Girls P. G. college, Raipur
*Corresponding Author E-mail:
प्रस्तावना
धनी धर्मदास संत कबीर की निर्गुण काव्य धारा के प्रमुख संत है तथा संत परम्परा को आगे बढ़ाने में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। धनी धर्मदास संत कबीर के प्रधान शिष्य और कबीर पंथ के प्रवत्र्तक माने जाते है। डा. राम रतन भटनागर के मतानुसार “छत्तीसगढ़ में कबीर पंथ के प्रवत्र्तक धर्मदास है।”1
धनी धर्मदास का जन्म संवत् 1452 कि. में बांधोगढ़ के प्रसिद्ध वैष्य मनमहेश जी के घर में हुआ था। इनका विवाह पथरहट नगर की कन्या सुलक्षणावती के साथ संवत् 1480 वि. में हुआ था। सुलक्षणावती को कबीरपंथ में आमिनमाता के नाम से भी जाना जाता है। संवत् 1520 वि. में बांधोगढ़ में विशाल जनसमूह के समक्ष धर्मदास जी ने अपनी पत्नी के साथ सद्गुरू कबीर से दीक्षा प्राप्त की थी। इनकी अनन्य और अडिग भक्ति से प्रसन्न होकर संत कबीर ने उन्हंे अपना प्रधान उत्तराधिकारी शिष्य बनाया और अटल बयालीस वंश तक कबीरपंथ की गुरूवाई का आशीर्वाद प्रदान किया था।
संत कबीर की समस्त वाणी-वचनों को संग्रहीत और लिपिबद्ध करने का महान कार्य धनी धर्मदास ने ही किया था। इसी बात की ओर संकेत करते हुए आचार्य राम चन्द्र शुक्ल जी ने भी लिखा है “कबीर वाणी का संग्रह उनके शिष्य धर्मदास जी ने संवत् 1520 वि. में किया था।”2 ज्ञान देने का एक माध्यम होता है, जैसे गीता को सुनने का श्रेय अर्जुन को है, वैसे ही संत कबीर की समस्त वाणी को सुनने और ज्यों का त्यों लिपिबद्ध करने का श्रेय धर्मदास जी को है। धर्मदास जी अत्यन्त विनम्रतापूर्वक संत कबीर से जीव, जगत, आत्मा, परमात्मा से सम्बन्धित प्रश्न पूछते जाते थे और संत कबीर द्वारा दिये उत्तर को लिपिबद्ध करके, संसार के कल्याण के लिए प्रस्तुत कर दिया था जो आज भी दामाखेड़ा वंशगद्दी (जिला बलौदा बाजार) में सद्गुरू कबीर धर्मदास संवाद के रूप में उपलब्ध है। धनी धर्मदास कबीर वाणी के संग्रह के साथ, स्वयं भी अनेक भक्ति पदों की रचना की है, जो यत्र-तत्र स्फुट पदों के रूप में उपलब्ध है। आचार्य गृन्धमुनि नाम साहेब द्वारा सम्पादित “धनी धर्मदास जी साहेब और आमिनमाता की शब्दावली” उनकी प्रमाणिक रचना मानी जाती है, क्योंकि यह वंश गद्दी में उपलब्ध अनेक हस्तलिखित ग्रन्थों, शब्दावली और अन्य प्रकाशित ग्रन्थों के आधार पर तैयार की गई है। इस शब्दावली के सम्पादक आचार्य गृन्धमुनि नाम साहेब का धनी धर्मदास के काव्य के सम्बन्ध में यह कथन बिल्कुल सत्य है कि “वे सत्य के साधक थे, सत्य की ओर जाने वाले यात्रियों का पथ-प्रदर्शन करने वाले अद्वितीय पथ-प्रदर्शक थे। उन्होंने अपने उपदेशों के द्वारा मानव समाज को उस महान आदर्श की और संकेत किया है, जिससे मानव महान बनता है, नर से नारायण बनता है। उनका प्रत्येक वचन उनकी गहरी और तीव्र अनुभूति का दर्पण है।”3
संत कवि धनी धर्मदास का सम्पूर्ण काव्य सद्गुरू की उपासना का काव्य है। उनके काव्य की भाशा पूर्वी हिन्दी है, जिससे कहीं-कहीं उर्दू, फारसी के शब्द भी पाये जाते हैं। धर्मदास जी के पद लोक मंगल की भावना से प्रेरित, लोक काव्य के अधिक निकट है। लोक गीतों की शैली अपनाये हुए अत्यन्त सरस, मधुर, लालित्यपूर्ण और गेय हैं। हिन्दी के अतिरिक्त बघेलखण्डी और छत्तीसगढ़ी भाशा में उनकी रचनायें मिलती हैं। वस्तुतः लोगों तक अपनी बात पहुँचाने के लिए उन्होंने लोक जीवन के निकट की भाशा का प्रयोग किया है। उनके काव्य का लोकस्पर्शी अंश हिन्दी साहित्य की बहुत बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने मंगल, होली, बसंत, बधावा, सोहर, चैका आरती आदि छन्दों का प्रयोग किया है। इसीलिए वे सच्चे अर्थो में जन-भाशा के कवि कहे जाते हैं। उनके काव्य में प्रकृति संवेदना का व्यापक फलक भी दिखाई पड़ता है।
डा. सत्यभाशा आडिल के अनुसार “छत्तीसगढ़ की माटी धर्मदास के भावप्रवण गीतों से संस्कारित व महिमा मंडित है। छत्तीसगढ़ में प्रथम गीत धर्मदास के ही मिलते हैं। पूर्वी भाव शैली ने छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी रूप धर लिया है। विंध्य से छत्तीसगढ़ आते-आते उनके गीत छत्तीसगढ़ी शैली में आत्मीय व अनुपम बन गए है।”4 वास्तव में धर्मदास जी के गीत बांधोगढ़ से चलकर कुदरमल, रतनपुर, धमधा, कवर्धा होते हुए वर्तमान समय में दामाखेड़ा में केन्द्रित हो गये हैं।
धनी धर्मदास छत्तीसगढ़ के प्रथम संत कवि के रूप में जाने जाते है। इस संबंध में राश्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त डाॅ. निरूपमा शर्मा का यह कथन उद्धृत करना एकदम सटीक लगता है कि “छत्तीसगढ़ के लिए गर्व का विशय है कि छत्तीसगढ़ के साहित्य में धनी धर्मदास प्रथम कवि और आमिन माता प्रथम कवयित्री हैं। संसार में ऐसा उदाहरण कहीं नहीं है, जहाँ पति-पत्नी दोनों बीजमन्त्र बनकर सृजन धर्मिता के मूल स्त्रोत हांे। छत्तीसगढ़ राज्य भारत का ऐसा राज्य है, जहाँ पर यह सम्भव हुआ है।”5
सन्त कवि धनी धर्मदास की रचनाओं का सर्वाधिक प्रभाव छत्तीसगढ़ में पड़ा है। आज अकेले छत्तीसगढ़ में ही 50-60 लाख कबीरपंथी धनी धर्मदास की वंशगद्दी से जुड़े हुए हैं। छत्तीसगढ़ी भाशा में धनी धर्मदास की अनेक रचनायें हैं। उदाहरण के लिए धनी धर्मदास अपने सद्गुरू से विनती करते हुए छत्तीसगढ़ी भाशा में कहते हैं -
‘‘अरजी भंवर बीच नइया हो,
साहेब पार लगा दे।
तन के नहुलिया सुरती के बलिया,
खेवनहार मतवलिया हो।
हमर मन पार उतरगे,
हमू हवन संग के जवईया हो।
माता पिता सुत तिरिया बंधु,
कोई नईये संग के जवईया हो।
धरमदास के अरज गोसांई,
आवागमन के मिटईया हो।
साहेब पार लगा दे।।‘‘
धनी धर्मदास का काव्य विशुद्ध हृदय की सहज अभिव्यक्ति है, हार्दिक भावों का सहज प्रकाशन है। यही कारण है कि उनके काव्य में कहीं भी वाग्विलास, आलंकारिक छन्द विधान का कोई भी स्थान नहीं है। उन्होंने अपने हार्दिक आध्यात्मिक भावों को कितने सहज, सरल ढंग से प्रस्तुत किया है जो पाठक के हृदय में अपना स्थान बना लेता है। उदाहरणतया -
‘‘पिंजरा तेरा झीना, पढ़ ले रे सतनाम सुवा।
तोर काहे के पिंजरा,
काहे के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।
तोर माटी के पिंजरा,
कपट के लगे हे किंवाड़ी रे सुवा।
पिंजरा में बिलाई,
कैसे के नींद तोहे आवै रे सुवा।
तोर सकल कमाई,
साधु के संगति पाई रे सुवा।
धरमदास गारी गावै,
संतन के मन भाई रे सुवा।।‘‘
किसी कवि या रचनाकार की सबसे बड़ी विशेशता यह होती है कि वह कालातीत होता है। समय उसका क्षय नहीं करता है, उसे समय की सीमा में बाॅंधा नहीं जा सकता है बल्कि प्रत्येक देश, काल, परिस्थिति में उसकी चमक शुक्ल पक्ष की भाॅंति बिखरती जाती है। वह केवल समकालीन उपयोगिता की वस्तु नहीं होती है बल्कि उसकी प्रासंगिकता हर युग में एक समान बनी रहती है। धनी धर्मदास के शाश्वत सत्य संदेश का मूल्य कभी कम नहीं होगा। असत्य का प्रकोप जितना बढ़ता है, सत्य उतना ही प्रासंगिक हो जाता है। धनी धर्मदास के पद यदि हृदय में उतर जायें तो आध्यात्मिक क्रान्ति का संचार कर देते हैं। धनी धर्मदास के काव्य के बारे में महान विचारक ओशो रजनीश का यह कथन पूर्णतया सही है कि ‘‘यह केवल विचार नहीं है। यह धर्मदास ने अपना सारा धन तुम्हारे सामने विखेर दिया है। इसे चुन लो, इसे गुन लो।‘‘6
सन्दर्भ ग्रन्थ सूची
1. भटनागर, डाॅ. रामरतन-‘‘हिन्दी साहित्य की भूमिका‘‘/पृ. 246/प्रयाग/1950 ई.
2. शुक्ल, आचार्य रामचन्द्र-‘‘हिन्दी साहित्य का इतिहास‘‘/पृ. 66/कमल प्रकाशन, नई दिल्ली/नवीनतम संस्करण.
3. साहेब, आचार्य गृन्धमुनि नाम - ‘‘धनी धर्मदास जी साहेब और आमिन माता की शब्दावली‘‘/निवेदन/पृ. 3/श्री सद्गुरू कबीर धर्मदास साहेब वंशावली प्रतिनिधि सभा, रायपुर/सन् 1988.
4. आडिल, डाॅ. सत्यभामा-‘‘संत धर्मदास‘‘/पृ. 389/श्री सद्गुरू कबीर धर्मदास साहेब वंशावली प्रतिनिधि सभा, रायपुर/सन् 2002
5. शर्मा, डाॅ. निरूपमा-‘‘छत्तीसगढ़ की महिला साहित्यकार‘‘ खण्ड-1/विशेष-पृ. 5/जे.एम.डी. पब्लिकेशन/नई दिल्ली/सन् 2014.
6. ओशो श्री रजनीश-‘‘जस पनिहार धरे सिर गागर‘‘/पृ. 362/रजनीश फाउण्डेशन, पूना/सन् 1978.
Received on 22.04.2015 Modified on 14.05.2015
Accepted on 26.05.2015 © A&V Publication all right reserved
Int. J. Ad. Social Sciences 3(2): April-June, 2015; Page 58-60