स्वतंत्र भारत में नारी की स्थिति

Dr. V. Sengupta, R.K. Panday

Assistant Professor Sociology, Govt. T.C.L. P.G. College, Janjgir (C.G.)

*Corresponding Author E-mail:

संक्षेपिका:

स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नारी की स्थिति में क्रांतिकारी बदलाव आया। वह घर की चारदिवारी से बाहर निकलकर देष के बहुआयायामी विकास में अमुल्य योगदान देने लगी। आज हमारे देश की नारियां राजनितिक सामाजिक, आर्थिक सांस्कृतिक, वैज्ञानिक और शैक्षिक सभी क्षेत्रो में आगे बढ़ रही है। सादियो से शोषित एवं पददलित नारी पुरूष प्रधान समाज के प्रभाव से मुक्त होकर आर्थिक राजनैतिक और सामाजिक दासता से निकलकर स्वछच्छंद जीवन का विकास करने की सुविधाएं प्राप्त कर रही है।

राजनैतिक क्षेत्र:-

ब्रिटिश शासन काल में भारतीय नारियों की राजनैतिक स्थिति ठीक नही थी। 1920 पूर्व उसे बोट देने काअकधकार नही था और नही वह किसी पद के उम्मीदवार हो सकती थी । भारतीय नारियों को सक्रिय राजनीतिक के आंगन में लाने का श्रेय विष्व बंधु बापु को जाता है, जिन्होने नारियो को अहिंसा युक्त आंदोलनो में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया।

सामाजिक एवं पारिवारिक क्षेत्र:-

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नारियों में सामाजि जागृति की एक नयी लहर उत्पन्न हुई। वे नारियां जो कभी घर की चारदिवारी में कैद रहती थी अब अनेक महिला संगठनों व समितियों की सदस्य बनकर अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने लगी है। शिक्षित नारियों ने पर्दे का परित्याब कर दिया सामाजिक क्षेत्र में आए इस बदलाव से रूढ़ी वादित, कर्मकाष्ठों और अनुष्ठानों का महत्व घट गया।

 

आर्थिकक्षेत्र-

स्वतंत्र भारत में नारी की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई उसे आर्थिक रूप से पुरूषों पर पहले की तरह आश्रित नही रहना पड़ता है। आज सभी क्षेत्रो में कामकाजी नारियों की संख्या में लगातार वृ़़द्धि हो रही है। कुछ विभागों में तो पुरूपों की अपेक्षा नारियों की संख्या अधिक है। नारियों ने अपने परिवार और समाज में आदर व सम्मान प्राप्त करने हेतु धनोपार्जन को एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया है दिन प्रतिदिन बढ़ती हुई मंहगाई ने परिवार पर यह दबाव डाला है कि आर्थिक गाड़ी को खीचने के लिए पुरूषों के साथ-साथ नारियां धनोपार्ज हेतु कार्य करें।

 

शिक्षा के क्षेत्र में:-

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में नारियों ने शिक्षा में काफी उन्नति की है शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति होने पर नारियों में चेतना जागृत हुई है आज नारियों राजनितिक, विज्ञान, व्यवसाय, साहित्य और समाज के प्रत्येक क्षेत्र में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है। कई स्त्रियां मानसिक रूप से पुरूषों से प्रतियोगिता करके अपनी प्रतिभा का परिचय दे रही है। पेइचिंग महिला सम्मेलन में शिक्षा को बुनियादी मानवाधिकार घोषित किया गया था।

 

विवध सेवाओं के क्षेत्रे:-

स्वतंत्रता के पश्चात् भारतीय नारियां विविध सेवाओं के क्षेत्र में आगे आयी है नारियां पुरूषों के सामान सभी पदो में सुशोभित है। स्वतंत्रता उपरांत बनने वाली मंत्री मण्डल में राजकुमारी अमृत और स्वास्थ्य विभाग की मंत्राणी बनी श्रीमति सरोजनी नायडु संयुक्त प्रांत की गवर्नर पद पर सुशोभित हुई। इसकेअतिरिक्त जो भी योग्यतम महिला जिसे पद के योग्य समझी गई उसे उस पद पर नियुक्त किया गया।

 

स्वतंत्र भारत में नारी की स्थिति में सुधार लाने का प्रयास:- वैधानिक प्रयास 

1.            स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् नारी की स्थिति में सुधार लाने के लिए कानून बनाय गये। ऐसे कानूनों में 1948 में बनाये गये फैक्ट्री कानून नारी सुधार की दृष्टि से काफी महत्व पूर्ण था। इस कानून के द्वार कार्य स्थल पर 30 से ज्यादा नारियों के कार्यरत होने पर शिशुशाला बनाने का अनिवार्य प्रावधान किया गया।

2.            सन् 1954 में विशेष विवाह अधिनियम बना जिसके अनुसार पुरूष या स्त्री किसी भी धर्म या जाति में अपना जीवन साथी चुन सकती है। इस अधिनियम का उद्देश्य विभिन धर्माबलम्बियों अर्थात् हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई, इल्यादि के बीच विवाह और विच्छेद की सुविधाओं और शर्तो की स्थापना करना था।

 

आर्थिक स्थिति सुधारने का सरकारी प्रायांस:-

1.            भारत सरकार ने महिलायों में आर्थिक उत्थान के निमित्त आई, आर, डी.पी. ( संभावित ग्रामीण विकास योजना) संचालित करती रही। यह योजना जिला ग्रामीण विकास प्रधिकरण के माध्यम से क्रियान्वित किया जा रहा है इस योजना में मार्च 1998 तक 89 लाख महिलायो को लाभ पहुंचाया गया था। इस योजनान्तर्गत प्रति परिवार 15 हजार रूपये ऋण 12.5 प्रतिशत ब्याज दर पर प्रतिवर्ष दिया जाता है।

2.            महिलायों को स्वरोजगार के अवसर सुलभ कराने के लिए भारतीय स्टेट बैकों ने शक्ति पैकेज लागु की है इसके अंतर्गत महिलाओं को रियायती ब्याज पर ऋण उपलब्ध कराया जाता है। महिला उद्यमियो के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये गये है।

3.            ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्रामीण महिला की भुमिका मुख्य होती है। भारत सरकार ने ग्रामीण महिलाओं के आय के स्त्रोत, समप्ति, आत्म विश्वास एवं निर्णय लने की क्षमता को विकसित करने के लिए डेयरी परियोजना (दुग्ध सहकारिता) प्रारंभ किया है यह परियोजना मुलतः भारत सरकार एवं बाल विकास विभाग तथा 10 प्रतिशत उत्तर प्रदेश का महिला एवं बाल कल्याण विभाग उपलब्ध कराता है।

 

अन्य महत्वपूर्ण प्रयास:-

1.            सन् 1958 में केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड ने प्रौढ़ स्त्रियों के लिए पौढ़ शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ किया।

2.            ग्रामीण महिलाओं मंें नारियों के उत्था के लिए गावां में महिला मण्डलों की स्थापना की गई है।

3.            नगरो में कार्यरत कामकाजी नारियों को आवासीय सुविधा देने के लिए महिला हास्टल खोला गया है। इस समय हमारे देश में 88 प्रतिशत महिला हाॅस्टल है।

4.            कामकाजी महिलाओं बीमार नारियों की बच्चो के लिए शिशुगृह खोले गये है।

पंचवर्षीय योजनाओ में नारी की स्थिति में सुधार का प्रयास

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भारत सरकार नेेश के सर्वागीण विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं बनाये।

1.            पहली पंचवर्षीय योजना   (1951     - 56)

2.            दूसरी पंचवर्षीय योजना         (1956     - 61)

3.            तहसरी पंचवर्षीय योजना (1964     - 69)

4.            चैथी पंचवर्षीय योजना          (1969     - 74)

5.            पांचवी पंचवर्षीय योजना इस योजना में स्त्री साक्षर्ता पर जोर तथा समाज कल्याण मंत्रालय में महिला कल्याण और विकास बोर्ड का गठन किया गया।

6.            छठवी पंचवर्षीय योजना (1980     - 85)

7.            सतवी पंचवर्षीय योजना         (1985     - 90)

8.            आठवी पंचवर्षीय योजना (1992     - 97)

 

पंचवर्षीय योजनाओ में नारी स्थिति में सुधार करने के लिए इन बातो का विशेष ध्यान रखा गया:-

1.            प्रत्येक क्षेत्र के विकास कार्यो में नारी की भागी दारी बढ़ाना ।

2.            नारी को आर्थिक स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन प्रदान करना।

3.            स्वास्थ्य सेवा सुधार एवं परिवार कल्याण।

4.            शिक्षण प्रशिक्षण के अवसर बढ़ाकर महिला प्रगति की राह आसान बनाना।

 

सुझाव -

1. नारी शिक्षा की बाधाओ को दूर करने के लिए निश्चित कदम उठाना।

2.            नारियों और पुरुषो की शिक्षा के बीच अपना दूरी को समाप्त करने के लिए विषेश योजना बनाना।

3.            नारी के सर्वागीण विकास के प्रयास करना ।

 

निष्कर्ष:-

स्वतंत्रता में नारी की स्थिति का उपरोक्त चित्रण किया गया है। महिलाओ की स्थिति में क्रांतिकारी परिवर्तन आया है। वह अपने घर की चार दीवारी तक सीमित न रहकर खुले वातावरण में कभी भी, कही भी आ जा सकती है। आज स्त्रीयों का काम करने का मुख्य उद्देश्य धनोपार्जन एवं समय का सदउपयोग है। स्त्रीयां मानसिक उन्नती के साथ शारीरिक उन्नती पर भी ध्यान दिया है।

 

संदर्भ सूची -

1.            शुक्ला, डाॅ. सुरेशचन्द्र, शुक्ला डाॅ. अर्चना, भारतीय इतिहास में नारी, शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन, समताकालोनी, रायपुर, च्ण्छवण् 49.53

2.            चतुर्वेदी डाॅ. मुरलीधर, दू. लां. ए. भारत का संविधान, 1994

3.            भारतीय सामाजिक समस्याएं, रिसर्च पव्लिकेशन जयपुर, 1999, पृ. 2001

4.            राठौर, मधु, पंचायतीराज और महिला विकास।

 

 

 

Received on 20.03.2014       Modified on 25.03.2014

Accepted on 28.03.2014      © A&V Publication all right reserved

Int. J. Ad. Social Sciences 2(1): Jan. –Mar., 2014; Page 71-72