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Volume No. :   7

Issue No. :  4

Year :  2019

Pages :  751-755

ISSN Print :  2347-5145

ISSN Online :  2454-2687


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छायावाद और मुकुटधर पाण्डेय



Address:   बीरू लालबरगाह1, डॉ. जयपाल सिंह प्रजापति2
1सहायक प्राध्यापक (हिन्दी), राजीव गाँधी शासकीय महाविद्यालय, सिमगा जिला बलौदाबाजार-भाटापारा
2विभागाध्यक्ष हिन्दी विभाग, पण्डित सुन्दरलाल शर्मा मुक्तविश्वविद्यालय, बिलासपरु, छत्तीसगढ़
*Corresponding Author
DOI No:

ABSTRACT:
पंडित मुकुटधर पाण्डेय ने जब ‘छायावाद‘ का नामकरण किया तो उस समय उन्होंने स्वछंदतावादी हिंदी कविता में भी एक विशिष्ट शैली प्रकट होते देखा। अंग्रेजी और बंगला की मिस्टिक कविताओं की तरह ही उसमे अस्पष्टता, भावों का धुंधलापन, रहस्यात्मकता, अज्ञात सत्ता के प्रति जिज्ञासा, समर्पण और आकुलता देखा। पाण्डेय जी के अनुसार ‘छायावाद‘ शब्द मिस्टिसिज्म के लिए आयाहै। छायावाद एक ऐसी मायामय सूक्ष्म वस्तु है कि शब्दों द्वारा उसका ठीक-ठीक वर्णन करना असम्भव है। उसमें शब्द और अर्थ का सामंजस्य बहुत कम रहता है। कहीं-कहीं तो इन दोनों में परस्पर संबंध नही रहता, लिखा कुछ और है मतलब कुछ और ही निकलता है। इसमें ऐसा कुछ जादू भरा है कि प्रत्येक पाठक अपनी रूचि और समझ के अनुसार इससे भिन्न-भिन्न अर्थ निकाल सकता है, भिन्न-भिन्न रीति से परन्तु समानभाव से उसका आनंद अनुभव कर सकता है।
KEYWORDS:
उन्मेष, प्रकट होना मिस्टिसिज्म, यह विश्वास कि साधना तथा प्रार्थना के द्वारा पूर्ण सत्य तथा ईश्वर तक पहुँचा जा सकता है, अध्यात्मवाद, रहस्यवाद. तद्रूप, समान, एक भाव, वैसाही. संघातिक, हनन योग्य अविलम्बित, आश्रित, सहारे पर स्थित, टिका आकुलता, बेचैनी, परेशानी की परिभाषा
Cite:
बीरू लालबरगाह, जयपाल सिंह प्रजापति. छायावाद और मुकुटधर पाण्डेय. Int. J. Rev. and Res. Social Sci. 2019; 7(4):751-755.
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